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जो सद्गुण चले गए है उन सद्गुणों को अर्जन करने, सम्बन्धो को जोड़ने और छूटे हुए पुण्य का उपार्जन करने के लिए श्रेष्ठकाल (मनुष्य भव) मिला है-श्री गुलाब मुनि

करही-55जो सद्गुण चले गए है उन सद्गुणों को अर्जन करने, सम्बन्धो को जोड़ने और छूटे हुए पुण्य का उपार्जन करने के लिए श्रेष्ठकाल (मनुष्य भव) मिला है-श्री गुलाब मुनि

क्षमा क्या है – आत्मा में चेतन्य की प्रतिष्ठा करना ही क्षमा है
– पूज्य श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब

करही ।।जीव ने चारों गति में अनंत काल तक भटक कर सुख और दुख दोनो का अनुभव किया है । सुख कम मिला दुख ज्यादा मिला । मरीचि से लेकर महावीर तक के भव में भगवान के जीव को अधिकांश समय दुख ही मिला, कभी एकेन्द्रिय, बेइंद्रिय, तेंईद्रीय में कोई भी भगवान के जीव से साता पूछने वाला नही था, कोई बचाव करने वाला नही था ।जब ऐसी आत्मा की यह स्थिति हो सकती है तो अपनी तो बिसात ही क्या है । लेकिन जीव को जब सम्यक बोध की प्राप्ति हो गयी तो उसका उद्धार हो गया । उक्त विचार प्रखर वक्ता पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये ।गुरूदेव ने फरमाया की अनंत अनेक भवो में जीव ने सद्गुण भी प्राप्त किये और दुर्गुण भी प्राप्त किये लेकिन सद्गुण चले गए और दुर्गुणों को जीव ने पकड़े रखा । जो सद्गुण चले गए है उन सद्गुणों को अर्जन करने, सम्बन्धो को जोड़ने और छूटे हुए पुण्य का उपार्जन करने के लिए श्रेष्ठ काल (मनुष्य भव) मिला है। मनुष्य भव में जीव सद्गुणों का अर्जन कर सकता है और छूटे हुए पुण्य को बढा (उपार्जन कर) सकता है लेकिन छोटी छोटी बातों में जीव कषाय ग्रस्त होकर पुण्य को क्षीण कर रहा है । पुण्य अर्जन करना बहुत कठिन है लेकिन पुण्य को क्षीण करना बहुत सरल है जैसे एक लाख टन रुई को इकट्ठा करने में कितना समय लगेगा वही उस रुई को माचिस की काडी 1 घण्टे में खत्म कर देती है । कषाय की काडी भी ऐसी ही है खरबो वर्षो के पुण्य भी मात्र एक मिनिट के कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) से समाप्त हो जाते है । इसके विपरीत पाप जल्दी इकट्ठा हो जाता है लेकिन समाप्त जल्दी नही होता है । तीव्र कषाय में आकर मैं तुझे देख लूंगा या अन्य बात बोलने मात्र से पल्योपम नरक का बन्ध कर सकता है । सम्यक बोध (सही समझ) का आभाव जीव को दुखी बना देता है वही संपत्ति का प्रभाव जीव को पापी बना देता है ।सम्यक बोध के आभाव में जीव क्षमा धर्म को भुल गया इसलिए पतन की ओर चले गया । क्षमा धर्म की आराधना क्यो करना है – अपने भव भ्रमण को समाप्त करने के लिए ।क्षमा क्या है – आत्मा में चेतन्य की प्रतिष्ठा करना ही क्षमा है । जैसे कोई मन्दिर बनता है और उसमे जब तक प्राण प्रतिष्ठा नही होती है तब तक वह पूज्यनीय और वंदनीय नही बनता है प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद ही वह पूज्यनीय और वंदनीय बनता है वैसे ही जिसकी आत्मा में क्षमा की प्रतिष्ठा हो जाती है वह पूज्यनीय और वंदनीय बन जाती है । आर्या मृगावती जी ने सती चंदनबाला जी की बात का प्रतिकार नही किया और हृदय में क्षमा की प्रतिष्ठा की तो तत्काल केवलज्ञान की प्राप्ति हो गयी । सामने वाले ने तुम्हे क्यों सुनाया, क्यो अपमान क्या ? सोचो जरा !! बैंक ने तुम्हे वारंट भेजा उनकी वसूली गाड़ी भी तुम्हारे घर आ गयी क्यो,, क्योकि तुमने बैंक से कर्जा लिया और भरा नही ऐसे ही पूर्व भव में जो कर्म करके आये हो वो भरना तो पड़ेगा ही क्योकि जैसा सप्लाय वैसा रिप्लाय तो मिलेगा ही । ये दुखमा आरा चल रहा है तो व्यक्ति से, वस्तु से या परिस्थिति से प्रतिकूलता तो आने वाली है ही बस उस समय क्षमा धर्म की स्थापना करके उन्हें स्वीकार कर लो जीव का उद्धार हो जाएगा* और अस्वीकार करोगे तो नए कर्म का बंधन होगा और अगले भव में दुख और बढ़ जाएंगे ।
कुछ विशेष पंक्तिया प्रवचन से-
– जरूरतमंद, असहाय,तपस्वी, बुजुर्ग और असमर्थ को स्थान दो, दुसरो को सहयोग करने से जबरजस्त पुण्य बंध होते है ।
– आदर और कदर की भूख जीव को मार देती है ।
– सहन करने की शक्ति मात्र मानव भव में ही विकसित हो सकती है ।
– नए कर्मो को बांधना यानी आगे होकर दुखो को निमंत्रण देना ।
– अपेक्षा ही दुख का कारण है ।
– क्षमा किसे करना – स्व को, सर्व को, सर्वज्ञ को ।
– क्षमा के आभाव के कारण ही जीव विचलित हो जाता है

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