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सबके उष्ण को शांत करेगा पर्युषण-मुनिश्री संधान सागर जी।

बड़वानी-नरेश रायक।
सबके उष्ण को शांत करेगा पर्युषण-मुनिश्री संधान सागर जी।


बड़वानी (निप्र) दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा पर विराजित संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी के शिष्य युवा तरुणाई के प्रखर वक्ता मुनि श्री संधान सागर जी महाराज ने कल से शुरू होने वाले पर्वराज पर्युषण पर्व पत्रकार वार्ता के दौरान सभी वरिष्ठ पत्रकारों को संबोधन करते हुए कहा की पर्युषण शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है परि याने चारो ओर से एवम उष्ण याने दाह या गर्मी ,अपनी गर्मी ताप को शीतलता में बदलना चाहते हो तो सिद्ध भूमि में हो रहा पर्युष्ण पर्व पर आजओ, जहा पर भव्य आयोजन होंगे । जिसका की नाम है आराधना साधना प्रयोग शाला । इस बार मुनिश्री दुर्लभ सागर जी साधना रत है अतः सारे कार्यक्रम मुनिश्री संधान सागर जी के मार्गदर्शन में ही संपन्न हो रहे है। इन दस दिनों में व्यक्ति को इतना सीखा दिया जाएगा की 355 दिन उसे केसे रहना चाहिए अर्थात ये एक सर्विस स्टेशन की तरह हो गया की कोई गाड़ी को पूरी तरह से साफ सफाई कर के उसमे ऑयल आदि भर कर नया कर दिया जावेगा। इस बार पर्युषण पर्वराज सिद्धों की पावनभूमि एवम संतो का सानिध्य ,यह सब योग मणि कंचन योग समान है ।
मीडिया प्रभारी मनीष जैन नेबताया की पूज्य मुनिश्री द्वारा प्रातः काल दश धर्म पर मंगल प्रवचन होंगे,मध्यान्ह जैन गीता तत्वार्थ सूत्र पर विशद व्याख्या ,शाम में ध्यान इस प्रयोग शाला का मुख्य आकर्षण होंगे ,साथ ही प्रार्थना,अभिषेक, शांतिधारा,पूजन,सामायिक,प्रतिक्रमणरात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम से सुबह से शाम तक सभी शिविरार्थी व्यस्त रहेंगे ,वर्षायोग समिति एवं ट्रस्ट कमेटी ने सभी तैयारियां पूर्ण कर ली है पत्रकारों के पूछने पर मुनिश्री ने दस धर्म की संपूर्ण और सटीक व्याख्या की
1उत्तम क्षमा, प्रतिकार की सामर्थ्य होते हुए भी सामने वाले के दुर्व्यवहार को सह लेना, उत्तम क्षमा है।
2उत्तम मार्दव मनाना नही, मान जाना उत्तम मार्दव है।
3उत्तम आर्जव स्वभाव में सरलता रखना ही उत्तम आर्जव है।
4उत्तम शौच लाभ और लोभ के चक्कर में ऊपर उठना उत्तम शौच धर्म है।
5उत्तम सत्य वास्तविकता को स्वीकार करना ही उत्तम सत्य धर्म है।
6 उत्तम संयम धर्म मन के अनुसार नही मन को अपने अनुसार साधना ही संयम धर्म है
7 उत्तम तप धर्म आत्मा से मट मैला मन को दूर करना ही उत्तम तप है
8उत्तम त्याग धर्म सर्वस्व को छोड़ देना त्याग है।
9 उत्तम आकिंचन धर्म ममत्व को भी त्यागना आकिंचन्य धर्म है ।
10 चाम और काम से उपर उठ कर राम की साधना ही उत्तम ब्रह्मचर्य है ।
मुनिश्री ने बताया की जीवन तो पशु पक्षी भी जी लेते है अपना गुजारा कर लेते है । पर मनुष्य को की परमात्मा की सबसे सर्वोत्कृष्ट कृति माना जाता है ,वह यदी इन 10 धर्मो का परायण कर ले तो पामर भी परमेश्वर बन जाता है, नर भी नारायण बन सकता है,कंकर भी संकर बन सकता है, पतित भी पावन बन जाता है । गुरुदेव ने पत्रकारों की प्रशंसा करते हुए बताया की पत्रकार यदि चाहे तो जन जन में धर्म की परिभाषा समझा सकते है ।वर्तमान में धर्म केवल मंदिर और देवालयों तक ही सीमित रह गया है ,जबकि धर्म तो 24घण्टे,एवम कंठ में, प्राण रहने पर्यंत तक जीने की कला है। धर्म स्वभाव है उसे कभी भी भुला नहीं जा सकता है। आने वाले 10 दिनों में सभी लोग इसे समझे ,जाने, और जीवन में प्रयोग करे।

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