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सामने वाले के अपराध को भूलना और स्वयं के अपराधों को याद रखना ही वीरता है- पूज्य श्री गुलाब मुनि जी महाराज।

करही-रूपेश डाकोलिया

पर्युषण महापर्व के छटवे दिन पूज्य गुरुदेव गुलाब मुनि जी ने धर्म सभा में कहा।

सामने वाले के अपराध को भूलना और स्वयं के अपराधों को याद रखना ही वीरता है- पूज्य श्री गुलाब मुनि जी महाराज।

संसार मे वैर का बोझा सबसे ज्यादा खतरनाक है ये आत्मा को तहस नहस कर देता है इसलिए सभी जीवों के प्रति क्षमा याचना के भाव रखना


पर्युषण महापर्व का छठवां दिन

जीव अनंत काल से रोज नए नए कर्म बांध रहा है और पुराने भोग रहा है और ऐसे ही जन्म का चक्कर निरन्तर चलता जा रहा है । क्षमा का महापर्व चल रहा है ।क्षमा किसको करना ? जिसने अपराध किया हो !! और कैसी करना ? तो उनकी भूलो को भूल जाना । और भूलना भूलो को ही सामने वाले व्यक्ति को नही भूलना, उन्हें तो स्वीकार करना । कैसे स्वीकार करना जैसे किसी का लड़का गुम हो गया और वो 5 साल बाद अचानक मिले तो उनकी माँ उससे कैसे मिलेगी, उसे कैसे स्वीकार करेगी ।वो उससे गले मिलेगी, भाव विभोर हो जाएगी, ऐसे ही अपराधी को माफ करना और गले मिलना ।उक्त विचार संयम सुमेरु पूज्य गुरुदेव श्री गुलाबमुनिजी महाराज साहब ने करही के अणु नगर स्थित स्थानक भवन में व्यक्त किये ।गुरुदेव ने आगे फरमाया कि मन मे कदाचित आ जाये कि मैं कैसे जाऊ, मैं कैसे झुक जाऊ तो इस मैं को हटा देना क्योकि अंहकार माफी मांगने नही देता और तिरस्कार माफी देने से रोकता है ।स्वयं के आडिट में सोचना की मैं अहंकारी या तिरस्कारी तो नही हूँ । संसार मे वैर का बोझा सबसे ज्यादा खतरनाक है ये आत्मा को तहस नहस कर देता है इसलिए सभी जीवों के प्रति क्षमा याचना के भाव रखना ! पाप , अपराध चार प्रकार के होते है । अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार । आपका चौविहार है और आपको बहुत भयंकर प्यास लगी है और पानी पीने का मन हुआ तो यह अतिक्रम, पानी पीने के लिए उठा व चला तो व्यतिक्रम, फिर गिलास भी उठा ली तो यह अतिचार, और पानी पी लिया तो वह अनाचार होगा । इन पापो को दूर करने की लिए क्या करना तो अतिक्रम का जो पाप हुआ उसका पश्चाताप करना, व्यतिक्रम के लिए आलोचना, अतिचार के लिए प्रायश्चित और अनाचार पाप के लिए व्रत को पुनः ग्रहण करना होगा । आपने जो-जो पाप किये है उनका स्वयं आडिट करना और उसे देखना की वह किस स्तर से हुआ है, जैसा पाप हुआ हो वैसे उसका प्रायश्चित करना । उपासक दशांग सूत्र में बारहवृति 10 श्रावको को धर्मी बताया है उनके पास कितना परिग्रह है किसी के पास 10-20-30 करोड़, किसी के और अधिक । सम्पूर्ण चीजो का त्याग नही किया फिर भी धर्मी हो सकता है लेकिन संसार के सम्पूर्ण जीवो को ह्र्दय से, भावपूर्वक यदि स्वीकार नही किया तो धर्मी नही बन सकते है । आज पर्युषण का छठवां दिवस है तो आज हम 6 बिंदुओं से क्षमापर्व की आराधना करने पर विचार करते है –
1,,द्रव्य से – संसार के सभी जीवों को क्षमा करना है, किसी को भी बाकी नही रखना है ।
2,,क्षेत्र से -सम्पूर्ण लोक में रहे हुए जीवो से क्षमा करनी है । 14 रज्जू लोक में अनंत जीव है । अनंत काल से अपनी आत्मा भी परिभ्रमण कर रही है । *हमारी आत्मा के संपर्क में आये जीव वर्तमान में सूक्ष्म एकेन्द्रिय से लेकर नरक, निगोध, तिर्यंच व देव गति में हो सकते है और उनसे उस समय वैर भाव रह गया हो तो उनसे भी क्षमा लेना व क्षमा करना ।
3,, काल से – हमारी आत्मा के सम्पूर्ण भूतकाल में किन किन जीवो से दुर्व्यवहार करके आये है, किन्हें असाता देकर आये है उन सभी जीवों से क्षमा मांगना व क्षमा देना ।
4,,भाव से – संसार के सभी जीव मेरे आत्मीय है, कोई भी पराया नही है ऐसे आत्मीय व वात्सल्य भाव से क्षमा मांगना व देना ।
5,,शब्द से – खमता हूँ और खमाता हूँ । आज कल मिच्छामि दुक्कड़म की फैशन चल गई है । मिच्छामि दुक्कड़म का अर्थ है मेरा पाप मिथ्या हो । इसमे क्षमा लेने व देने दोनों के भाव नही है । इसलिए सबसे अच्छा खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु में या फिर खमत खमावना (खमता हूँ- खमाता हूँ) ।
6,,गुण से – मोक्ष मार्ग प्रशस्त हो इस भाव से क्षमायाचना करना है । मोक्ष मार्ग कब प्रशस्त होगा जब हम संसार के सभी जीवों के प्रति आत्मीय और वात्सल्य भाव होगा ।
*शांति समाधी साधनों से नही साधना से मिलती है और क्षमा की साधना करो इसमे तो भूखा भी नही रहना है मात्र मन को थोड़ा सा मोड़ना है और झुक जाना है और जो भी प्रतिकूल लगे उससे क्षमा याचना करना है ।
छः अन्य पहलू भी बताए कि क्षमा कैसे करना ।
1,, हार्दिक क्षमा ! 2,,वीर क्षमा ! 3,, चिरंजीव क्षमा ! 4,,बिनशर्ति क्षमा ! 5,,ज्ञान गर्भित क्षमा ! 6,,रसवती क्षमा । इन बिंदुओं को भी विस्तार से समझाया । अंत मे गुरूदेव ने कहा इन सभी बातों को समझकर जो अपने जीवन मे उतारेगा वो जीव क्षमा शील बनकर अपनी आत्मा का उद्धार करेगा ।

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